जब मनुष्य को यह विदित हो जाता है कि वह दिव्य शक्ति को, जिसे परमात्मा कहते हैं, एक भाग है, उसका उस असीम शक्ति से अविच्छिन्न संबंध है, तो उसे अपने अंदर एक दैवी बल की अनुभूति होने लगती है।
उसके लिए तब कोई भी कार्य ऐसा नहीं रह जाता जो उसके सामर्थ्य से बाहर हो; तब उसकी निर्बलता आमूल नष्ट हो जाती है, तब ईश्वरीय शक्ति उसके अणु-अणु में, उसकी अंतरात्मा में आ जाती है।
तभी मनुष्य को सफलता की कुंजी मिल जाती है अर्थात आत्मविश्वास ही वह ईश्वरीय शक्ति है, जिसके फलस्वरूप मनुष्य बड़े से बड़ा काम कर गुजरता है।
उसके लिए तब कोई भी कार्य ऐसा नहीं रह जाता जो उसके सामर्थ्य से बाहर हो; तब उसकी निर्बलता आमूल नष्ट हो जाती है, तब ईश्वरीय शक्ति उसके अणु-अणु में, उसकी अंतरात्मा में आ जाती है।
तभी मनुष्य को सफलता की कुंजी मिल जाती है अर्थात आत्मविश्वास ही वह ईश्वरीय शक्ति है, जिसके फलस्वरूप मनुष्य बड़े से बड़ा काम कर गुजरता है।
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